"नाराज़गियाँ और रिश्तों की चुप आवाज़"
(By Rebel Pen)
नाराज़ रहकर हम अक्सर अपनों से दूरी तो बना लेते हैं...
पर सुकून? वो कभी नहीं पाते।
कभी गौर किया है?
जब आप किसी अपने से खफा होते हैं,
तो मन बहलाने के लिए हज़ार चीज़ें करते हैं —
मोबाइल, म्यूज़िक, सोशल मीडिया,
मगर दिल के भीतर एक कोना हमेशा
'उसी' के नाम से खाली रह जाता है।
क्योंकि रिश्तों की गहराई बस बातों में नहीं,
भावनाओं की ख़ामोशी में भी छुपी होती है।
हममें से हर कोई बस यही सोचता है —
"मैं सही हूँ, उसने ग़लत किया।"
लेकिन सच्चाई यह है कि —
हर झगड़े में एक ही इंसान गलत नहीं होता।
कभी-कभी दोनों ही अपनी जगह सही होते हैं,
और दोनों ही कहीं न कहीं गलत।
❝ झगड़े की जड़ 'गलतफहमी' होती है,
और उसकी छाया 'अहंकार' ❞
बस यही अहंकार हमें रोकता है —
माफ़ी माँगने से,
पहला क़दम बढ़ाने से,
और वो छोटी सी मुस्कान लौटाने से
जो कभी हमारे बीच की सबसे बड़ी ताक़त हुआ करती थी।
हमें समझना होगा —
कि जो लोग हमारे ज़रा से रुखेपन से
टूट जाते हैं,
वो ही तो हैं जो सबसे ज़्यादा टूटकर हमसे जुड़े होते हैं।
तो क्यों न थोड़ा ठहरें?
थोड़ा समझें?
थोड़ा झुक जाएँ…
क्योंकि रिश्ते जीतने में नहीं,
संभालने में अमर होते हैं।
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"दूरी बना लेना आसान है,
मगर उसके बाद जो ख़ामोशी मिलती है,
वो इंसान को भीतर तक खोखला कर देती है।"
इसलिए दोस्त,
अगर कोई "अपना" है,
तो उसे नाराज़ रहकर मत खोओ —
बल्कि थोड़ा वक्त दो, थोड़ा अपनापन, और थोड़ा सब्र…
शायद उसी में सब कुछ फिर से जुड़ जाए।