जब साल अपने पहले क़दम बढ़ाता है, तब इंसान बाहर नहीं-अपने भीतर झाँकता है…
कैलेंडर की तारीख़ बदलती है, पर असल हलचल दिल के पन्नों में होती है।
नई सुबह की हवा में ताज़गी होती है, और मन के किसी कोने में हल्की-सी घबराहट भी…
क्योंकि नया साल सिर्फ़ उम्मीद नहीं लाता, वो ज़िम्मेदारी भी लाता है-
ख़ुद से किए गए वादों की, अधूरी रह गई बातों की, और उन सपनों की
जिन्हें हमने पिछली थकान की वजह से थोड़ा पीछे छोड़ दिया था…
साल की शुरुआत किसी कोरे काग़ज़ जैसी नहीं होती,
उस पर पहले से ही बहुत कुछ लिखा होता है-
पिछले साल की थकावट, कुछ जख़्म जो अब भी टीसते हैं,
और कुछ सीख जो अब आवाज़ बनकर भीतर बोलती है।
नया साल हमें यह नहीं कहता कि सब भूल जाओ,
वो बस इतना कहता है-
जो सीखा है, उसे साथ लेकर आगे बढ़ो…
साल के पहले दिन इंसान बड़ा नहीं बनता,
वो बस थोड़ा ज़्यादा ईमानदार हो जाता है…
ख़ुद से, अपनी कमज़ोरियों से,
और उन डर से जिनसे वो पूरे साल भागता रहा।
ये वही दिन होते हैं जब हम यह मानते हैं
कि हाँ, हम टूटे थे…
लेकिन टूटकर रुक नहीं गए।
नए साल की शुरुआत में कोई शोर नहीं होता,
कोई तालियाँ नहीं बजतीं…
बस भीतर एक धीमी-सी आवाज़ उठती है-
“इस बार खुद को बीच रास्ते पर मत छोड़ना।”
वो आवाज़ हमें याद दिलाती है
कि हर सुबह जीत के लिए नहीं होती,
कुछ सुबहें बस उठने के लिए होती हैं…
हर नया साल हमें एक और मौक़ा देता है-
ख़ुद को साबित करने का नहीं,
ख़ुद को समझने का।
ये समझने का कि हर दिन दौड़ना ज़रूरी नहीं,
कभी-कभी रुककर साँस लेना भी
आगे बढ़ने का हिस्सा होता है।
छात्र के लिए नया साल
नई किताबों की खुशबू से नहीं,
नई उम्मीदों की चुप्पी से शुरू होता है…
वही सिलेबस, वही लक्ष्य,
पर इस बार दिल में थोड़ा और सब्र होता है।
क्योंकि पिछला साल सिखा गया
कि हर मेहनत तुरंत रंग नहीं लाती,
कुछ मेहनतें बस चरित्र बनाती हैं।
नया साल हमें फिर से मैदान में उतारता है-
कभी राहुल द्रविड़ की तरह
धीरे-धीरे टिके रहने के लिए,
तो कभी रोहित शर्मा की तरह
सही पल पर जोखिम लेने के लिए।
ये साल कहता है-
हर गेंद पर शॉट मत मारो,
पर जब मौका मिले
तो डरकर पीछे भी मत हटो।
इस साल भी शायद
कुछ दिन भारी होंगे,
कुछ सवाल उलझाएँगे,
और कुछ रातें फिर से लंबी होंगी…
लेकिन अब हमें पता है
कि थक जाना हार नहीं है,
रुक जाना हार है।
नए साल की शुरुआत
किसी जादू का वादा नहीं करती,
वो बस यह भरोसा देती है
कि अगर आप ईमानदारी से चलते रहे,
तो रास्ता खुद-ब-खुद बनता जाएगा।
और यही इस साल की सबसे बड़ी शुरुआत है-
यह मान लेना कि
हम परफेक्ट नहीं हैं,
पर हम कोशिश छोड़ने वाले भी नहीं हैं।
क्योंकि ज़िंदगी हर साल हमें यह नहीं पूछती
कि तुम जीते या हारे,
वो बस इतना देखती है
कि तुम चले या रुक गए…
और जो चल पड़ा,
वही नए साल का असली हक़दार है।
