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🌸 आज का सुविचार

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साल का अंत

जब साल अपने आख़िरी पन्ने पलट रहा होता है, तब इंसान अपने भीतर की डायरी खोलता है… बाहर सर्द हवा चल रही होती है, और भीतर यादों की आंधी… कोई बीता हुआ लम्हा, कोई अधूरी बात, कोई थकी हुई जीत और कोई चुपचाप झेली हुई हार… इस वक़्त इंसान कैलेंडर नहीं देखता, अपने दिल का हिसाब देखता है और वहीं से शुरू होती है असली कहानी , वही जिंदगी के सफर की कहानी जो कभी सुहानापन से भड़ा होता हैं तो कभी दुखों के अंबार से...

कभी-कभी साल का आख़िरी हफ्ता किसी आईने की तरह होता है जो बिना कुछ कहे आपके सामने पूरा बीता हुआ वक़्त रख देता है... वो दिन भी दिखाता है जब आप हँसे थे, और वो रातें भी जब आपने ख़ुद को मज़बूत होने का नाटक किया था... शायद यही पल होते हैं जब इंसान समझता है कि वक्त सिर्फ़ गुजरता नहीं, वो हमें बदलता भी है...

कभी किसी ने आपकी थकान नहीं देखी, कभी किसी ने आपके भीतर के डर नहीं पढ़े… बस दुनिया ने आपका मुस्कुराता चेहरा देखा और आप हर दिन वो मुस्कान ओढ़कर लड़ते रहे…

साल जा रहा है… धीरे-धीरे, बिना शोर किए, जैसे कोई थका हुआ मुसाफ़िर अपनी पोटली उठाकर अगले रास्ते की ओर बढ़ रहा हो... पीछे मुड़कर देखें तो लगता है कि ये साल सिर्फ़ तारीख़ों का सिलसिला नहीं था, बल्कि उन तमाम लड़ाइयों, कोशिशों और खामोश जद्दोजहद का नाम था जिन्हें हमने किसी को दिखाए बिना लड़ा... बाहर से सब कुछ सामान्य लगता रहा, लेकिन भीतर हर किसी ने अपने हिस्से की टूटन, अपने हिस्से की थकान और अपने हिस्से की उम्मीदें ढोई हैं...

कुछ लोग हर दिन टूटे और हर सुबह फिर खड़े हुए… बिना ताली के, बिना शोर के ,  बस इसलिए क्योंकि रुकना उनके हिस्से में नहीं था…

इसीलिए कहा जाता है कि ख़ुद को ठीक बताने में और सच में ठीक होने में जो फर्क़ होता है, वही ज़िंदगी है... हम अक्सर दुनिया के सामने मुस्कुराते हुए खड़े रहते हैं, जबकि भीतर बहुत कुछ धीरे-धीरे भर रहा होता है... कुछ लोग उसे संभाल लेते हैं, कुछ उससे लड़ते रहते हैं पर असली बहादुरी शायद इसी में है कि टूटकर भी आगे बढ़ा जाए...

और यही वो लड़ाई है जो कोई नहीं देखता… बस आप और आपका मन जानते हैं कि आपने कितनी बार खुद को समेटा है…

साल आते रहेंगे, जाते रहेंगे… हर नया साल अपने साथ नए वादे, नए डर और नई उम्मीदें लाता है... हर पुराना साल कुछ अधूरी बातें, कुछ सीखे हुए सबक और कुछ ऐसी यादें छोड़ जाता है जो चुपचाप दिल में रह जाती हैं... इनके बीच अगर कोई चीज़ हमें टिकाए रखती है, तो वह है धैर्य... वो धैर्य जो हमें बताता है कि हर सवाल का जवाब तुरंत नहीं मिलता, हर दर्द का इलाज एक रात में नहीं होता...

इसी धैर्य की सबसे बड़ी परीक्षा एग्ज़ाम की तैयारी में होती है... वो लंबी रातें, वही किताबें, वही सिलेबस और वही सवाल जिनसे हम कई बार हारते भी हैं, और कई बार खुद को पहचानते भी हैं... हर रिज़ल्ट सिर्फ़ अंक नहीं बताता, वो ये भी बताता है कि आपने कितनी ईमानदारी से अपनी पारी खेली...

ज़िंदगी भी किसी टेस्ट मैच की तरह है... हर गेंद पर चौका या छक्का नहीं लगता, कई बार सिर्फ़ टिके रहना ही सबसे बड़ी जीत होती है... ऐसे में राहुल द्रविड़ की तरह क्रीज़ पर टिके रहना ज़रूरी है , बिना शोर, बिना दिखावे के, बस अपनी पारी को ज़िंदा रखते हुए... ये वही सब्र है जो एक छात्र को बार-बार हारने के बाद भी किताब के सामने वापस बिठा देता है...वो सब्र जो कहता है कि आज स्कोर भले कम हो, पर विकेट अभी गिरा नहीं है…

और फिर कुछ पल ऐसे भी आते हैं जब हालात को बदलना ज़रूरी हो जाता है... जब लगे कि बहुत रुक लिए, बहुत सह लिया अब थोड़ा जोखिम लेना चाहिए... तब रोहित शर्मा की तरह पुल शॉट वाला छक्का मारना पड़ता है... पूरे आत्मविश्वास के साथ, बिना डर के, ठीक वैसे ही जैसे किसी मुश्किल पेपर के बीच एक साहसी सवाल हल कर देना क्योंकि हर लड़ाई सिर्फ़ बचाव से नहीं जीती जाती , कुछ जीत आक्रमण से भी लिखी जाती हैं…

साल का जाना हमें यही याद दिलाता है कि हम परफेक्ट नहीं थे, लेकिन हमने कोशिश की... हम हर एग्ज़ाम में नहीं जीते, पर हमने हार मानने से भी इंकार किया... और यही शायद असली उपलब्धि है कि सब कुछ ठीक न होने के बावजूद भी हम चलते रहे...

नए साल में शायद रास्ते आसान न हों, शायद सवाल और बढ़ जाएँ, लेकिन अगर हमारे पास धैर्य और साहस दोनों होंगे, तो हम हर पिच पर खुद को संभाल भी पाएँगे और ज़रूरत पड़े तो खेल पलट भी पाएँगे...

क्योंकि आख़िर में ज़िंदगी सिर्फ़ कैलेंडर बदलने का नाम नहीं है , वो खुद को हर साल थोड़ा और मज़बूत,थोड़ा और सच्चा , थोड़ा और बेहतर बनाने का सफ़र है...

और आख़िर में बस एक ही बात बचती है कि जो साल हारते हुए भी खड़े रहना सिखा दे, वही साल आपकी असली जीत होता है…


क्योंकि कहते हैं न जिंदगी एक सफर है सुहाना...

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